Friday, February 26, 2016

Newcomers are not allowed in Indian politics?

राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिये केवल बोलना ही नहीं, कुछ करना भी जरूरी


राजनीति सुधारक श्री भरत गांधी के चार साल के संघर्ष के बाद मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव, उनके सहयोगियों, डीजीपी कार्यालय के अधिकारियों पर लगे अपहरण, गैग रेप के झूठे मुकदमों की साजिश आदि आरोपों पर जांच करने के लिये सीबीसीआईडी को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का निर्देश


सन् 2013 में दर्ज केस संख्या- 40582/24/48/2013 पर उत्तर प्रदेश के सीबीसीआईडी के महानिदेशक को आदेश देते हुये राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपने आदेश (प्रतीक्षित) दिनांक- ......... में कहा है कि वे आवेदक भरत गांधी की याचिकाओं में लगे आरोंपों की जांच करके जांच रपट आयोग को विचारार्थ प्रस्तुक करें।


भारत की राजनीति एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसमें यह तय होना है कि राजनीति और अपराध अलग हो पायेंगे या नही? आम आदमी पार्टी को लेकर जिस तरह का उत्साह मीडिया में जनता में देखा गया, उससे लगा था कि शायद भ्रष्टाचार व अपराध से अब भारत की राजनीति का दामन छूट जायेगा। किन्तु ऐसा होता नही दिख रहा है। आम आदमी पार्टी के ज्यादातर विधायकों पर आपराधिक मुकदमें कायम हो चुके हैं।
अपराध को संरक्षण देने के लिये देश में जिस नेता को सबसे ज्यादा बदनामी मिली, वह हैं- उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव। जब उनके पुत्र अखिलेश यादव ने सत्ता की बागडोर सभाली तो बहुत से लोगों को लगा कि विदेश में पढ़ा-लिखा ये युवक अपने पिता के रास्ते पर न चल कर उ. प्र. को एक ताजी व शीतल राजनीति देगा। किन्तु जून 2012 में सम्पन्न हुये कन्नौज उपचुनाव को जिस तरीके से मुलायम सिंह की पुत्रवधू डिम्पल यादव ने जीता, उससे अखिलेश यादव की ओर आस लगाये बैठे लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। कन्नौज की यह अपराध गाथा वैसे तो समाचार पत्रों में कभी-कभी राष्टीय खबर बनती रही है, किन्तु पूरी कहानी राजनीति के आपराधीकरण का एक नया आयाम पेश करती है। प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के संरक्षण में चल रही अपराध गाथा पर सारी मीडिया मौन है। इस अंक में कन्नौज अपहरण काण्ड की पूरी कहानी इसलिये दी जा रही है कि जिससे सुधी पाठक यह जान सकें कि देश में राजनीति के आपराधीकरण के लिये वास्तव में जिम्मेदार कौन है?
कानूनी व संवैधानिक सुधारों पर दर्जनों पुस्तकों के लेखक भरत गांधी कहते हैं कि उन्होंने उक्त उपचुनाव के 6 साल पहले से अमेठी, रायबरेली व कन्नौज जैसे क्षेत्रों को काम करने के लिये चुना। उनका कहना है कि इन क्षेत्रों को इसलिये चुना गया क्योंकि यहां से देश के बड़े दलों का नेतृत्व करने वाले लोग चुनाव लड़ते हैं। श्री गांधी का आकलन था कि इन क्षेत्रों की जनता को समझाने का मतलब होता है, बड़ी पार्टियों के प्रमुखों की सोंच में बदलाव लाना। उनका यह भी निष्कर्ष था कि बड़ी पार्टियों के प्रमुखों की सोंच में बदलाव का मतलब होता है देश की राजनीतिक चेतना में बदलाव। उनके और उनके साथियों को उम्मीद थी कि जल-जंगल-जमीन जैसे प्राकृतिक साधनों व मषीन के कारण पैदा हुये साझे धन में देश के वोटरों को हिस्सा दिलाने वाला संसद में 137 सांसदों द्वारा पेश वोटरशिप का जो प्रस्ताव कानून की शक्ल नहीं ले पाया, वह शायद देश के ‘‘वी. आई. पी. क्षेत्रों’’ की जनता को समझाने से कानून की शक्ल ले लेगा।
राजनीति सुधारने के वोटरशिप सहित तमाम एजेण्डों पर काम करने के लिये उस समय एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन किया गया, जब संसद में वोटरशिप का प्रस्ताव आने से बलात् रोक दिया गया। इस नई नवेली पार्टी का नाम रखा गया- वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल, वीपीआई। इस पार्टी के बैनर तले अमेठी व रायबरेली में बड़े पैमाने पर जनता को ध्रुवीकरण हुआ। वहां कोई विशेष घटना नहीं घटी। किन्तु अखिलेश यादव के क्षेत्र कन्नौज में काम करना इतना आसान साबित नहीं हुआ।
हुआ यह वीपीआई ने संसद में पेश राजनीतिक सुधारों की योजना की ओर लोगों का ध्यान खींचने के उद्देश्य से कन्नौज लोकसभा के उप चुनाव 2012 में अपना प्रत्यासी खड़ा करने का फैसला किया। इस फैसले से पहले वह कहते हैं कि सभी बड़े दलों से संपर्क किया गया व उनसे उप चुनाव में प्रत्यासी न उतारने का आग्रह किया गया। उनका दावा है कि उनकी बातों पर कांग्रेस, बी. जे. पी. व बसपा जैसे दलों ने कन्नौज उप चुनाव में प्रत्यासी न उतारने का आग्रह मान लिया। परिणामस्वरूप चुनाव केवल समाजवादी पार्टी व वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल के बीच हो गया। चुनाव की घोषणा होते ही सपा हरकत में आ गई और बकौल भरत गांधी, चुनाव लड़ने के लिये कन्नैाज कलेक्टेट जाने वाले सभी लगभग 83 लोगों का बंदूक की नोक पर अपहरण कर लिया गया और चुनाव नही होने दिया गया। मीडिया में ये पूरी कहानी नही आई। केवल यह खबर आई कि मुख्यमंत्री की पत्नी डिम्पल यादव कन्नौज से निर्विरोध सांसद बन गईं, उनके खिलाफ किसी ने पर्चा ही नही भरा।
वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल  के अलावा अपहरण का शिकार किसी ने भी इस जुर्म के खिलाफ आवाज नही उठाया। किन्तु इस नन्हीं सी पार्टी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में डिम्पल के चुनाव के खिलाफ चुनाव याचिका दायर करके चुनाव की वैधता को चुनौती दिया। न्यायालय ने लगभग चार महीने तक बड़ी सक्रियता दिखाई किन्तु जब डिम्पल यादव काफी मशक्कत के बाद न्यायालय में पेश हुई तो हर सप्ताह सुनवाई में चल रही केस की अचानक सुनवाई लगभग डेढ़ साल तक के लिये बंद हो गई। इस अवधि में डिम्पल यादव का संसदीय कार्यकाल पूरा हो गया और लोकसभा के गत वर्ष हुये चुनाव में फिर से जीता हुआ घोषित कर दिया गया। भरत गांधी कहते हैं कि इस बार वास्तव में चुनाव मोदी लहर में भाजपा के प्रत्यासी श्री पाठक ने जीत लिया था। किन्तु मतगणना रोक कर अचानक निर्वाचन अधिकारी ने चमत्कारिक ढ़ग से डिम्पल यादव को विजयी घोषित कर दिया। कथित रूप से विजयी घोषित होने के बाद हाई कोर्ट इलाहाबाद ने डिम्पल यादव के खिलाफ पेश चुनाव याचिका की अचानक फिर से सुनवाई शुरू कर दी और 23 जुलाई 2012 को दाखिल वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल की चुनाव याचिका संख्या 19/2012 तकनीकी आधार पर दिनांक 03.09.2014 को खारिज कर दिया।
चुनाव रोकने के लिये किये गये सामूहिक अपहरण काण्ड जानकारी चुनाव आयोग को 6 जून 2012 को दिया गया। आयोग ने अपहरण अभियान की संरक्षिका कन्नौज के तत्कालीन कलेक्टर से रपट मांगा। कलेक्टर यानी निर्वाचन अधिकारी सिल्वा कुमारी जे. ने लिखकर भेजा कि ‘‘कलेक्टेट के आसपास के दुकानदारों से अपहरण के बारे में पूंछा गया तो उन्होने बताया कि अपहरण नही हुआ’’। चुनाव आयोग ने आरोपी से रपट मांगा व उसकी रपट को स्वीकार करके निष्पक्ष जांच की जरूरत नही समझा। आयोग अकादमिक स्तर पर राजनीति का अपराधीकरण राकने के तमाम कसीदे पढ़ता है, लेकिन जब अपराधियों पर कार्यवाही करने का मौका आता है तो इसी तरह का बर्ताव करता है, जैसा उपरोक्त कहानी में बताया गया। इस पूरी परिघटना में चुनाव आयोग की भूमिका की जांच करें तो इस निष्कर्ष को नकारा नही जा सकता है कि ‘‘चुनाव मे प्रत्यासियों का अपहरण करके चुनाव को बलात् निर्विरोध घोषित करवाने में चुनाव आयोग को विष्वास में लिया गया था’’।
सामूहिक अपहरण काण्ड के जरिये मुख्यमंत्राी ने अपनी पत्नी को संसद भवन के अंदर पंहुचाकर ‘‘माननीय सांसद’’ बना दिया।  अजीब बात है कि जहां राष्टपति का चुनाव भी निर्विरोध नही होता वहां सांसद का चुनाव निविरोध हो गया मीडिया की इस खबर पर लोगों ने आसानी से यकीन कर लिया। सामूहिक अपहरण काण्ड की पूरी जानकारी केन्द्रीय गृह मंत्री श्री सुशील कुमार सिंदे को दिया गया। भारत सरकार के गृह सचिव को लगभग एक दर्जन पत्र भेजकर अपहरणकर्ताओं के खिलाफ भेजी गई शिकायत दिनांक 21 जून 2012 पर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई। गृह सचिव नक कार्यवाही करने की बजाय ‘‘कानून व्यवस्था राज्य का मामला है’’-इस तर्क पर सभी प्रत्यावेदनों को उत्तर प्रदेष के उसी गृह सचिव भेज दिया, जो मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के अधीन काम करता है। इस तरह देश व प्रदेश के गृह सचिवों को भेजे गये सभी प्रत्यावेदन सामूहिक अपहरण काण्ड के आरोपी मुख्यमंत्री की टेबल पर कार्यवाही करने के लिये पंहुच गये। जिनपर गत तीन सालों में कुछ नही हुआ। सूचना के अधिकार से की गई कार्यवाही की मांग करने वाले कृष्णानन्द शास्त्री को हथियारों से डरा के चुप करा दिया गया।
वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल  के संस्थापक व ‘नीति निर्देषक’ भरत गांधी को व पार्टी के प्रत्यासी  प्रभात पाण्डेय को जब ध्मकिया मिलने लगीं, तो भरत गांधी ने सुप्रीम कोर्ट. में मुकदमा दायर करके पुलिस सुरक्षा दिये जाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को दो बार स्थगित किया गया। तीसरी बार सुनवाई हुई तो न्यायाधीश चंद्रमौली कुमार प्रसाद की बेच ने भरत गांधी की सीबीआई जांच की दलीलों को नहीं माना। केन्द्र व राज्य के गृह सचिवों की चुप्पी पर कोर्ट ने चुप्पी साध लिया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले दिनांक-22 जनवरी 2013 में लिखा कि -‘‘कोर्ट क्रिमिनल रिट में की गई प्रार्थना से सहमत नही है। जहां तक याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा की बात है कोर्ट इनको सलाह देती है कि वे नये सिरे से उ.प्र. के पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में सुरक्षा के लिये प्रत्यावेदन लगायें। पुलिस महानिदेशक खतरे की जांच करके नियमानुसार सुरक्षा देगे। किन्तु इसका यह मतलब नही समझा जाना चाहिये कि कोर्ट याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा देने का आदेश दे रही है।’’  सुप्रीम कोर्ट अपहरणकर्ताओं के खिलाफ किसी भी तरह की जांच करने व एफ. आई. आर. दर्ज करने के सवाल पर चुप्पी साध गया। परिणामस्वरूप अपराधियों के मनोबल बढ़ गये व अपराधों की लड़ी लग गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भाषा का फायदा उठाते हुये पुलिस महानिदेशक ने आदेश को गंभीरता से न लेते हुये जांच के नाम पर लीपा-पोती कर दी और मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द के गुण्डों से घिरे याचिकाकर्ताओं को पुलिस सुरक्षा देने से मना कर दिया।
हाई कोर्ट इलाहाबाद व सुप्रीम कोर्ट के उक्त इस आदेशों से समाज में ये संदेश गया कि ‘‘राजनीति में, अपराध के जरिये चुनाव जीत लेना व संसद सदस्य बन जाना एक साधारण बात है, राजनीतिक अपराधियों को सजा दिलाने में कोर्ट का कीमती समय बर्बाद करना उचित नही है। राजनीतिक अपराधियों को सजा दिलाने का काम करने वाले लोगों की सुरक्षा भी बहुत कीमती चीज नही है। सत्तासीन मुख्यमंत्रीगण को अपराध को संरक्षण देने का अघोषित अधिकार है।’’ हाई कोर्ट इलाहाबाद व सुप्रीम कोर्ट के उक्त इस आदेशों से लोगों की ये धारणा भी मजबूत हुई कि ‘‘समरथ को नहि दोष गोसाईं’’, ‘‘ताकतवर लोगों का कुछ नही बिगड़ता भाई!’’, ‘‘अदालतें सफेद हाथी हैं। इनके वश का कुछ भी नही है’’।
यह आशंका निराधार नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट. के आदेश पर भरत गांधी व प्रभात पाण्डेय को पुलिस सुरक्षा देने पर डीजीपी देव राज नागर ने नियमानुसार जांच नहीं की और सुरक्षा देने से मना कर दिया। जब सूचना के अधिकर के तहत जाच की रपट मांगी गई तो सूचना देने से मना कर दिया। जब पुलिस महानिदेशक के विरुद्ध राज्य सूचना आयेाग में अपील की गई तो के आयोग के चेयरमैन जावेद उस्मानी ने दिनांक-25 जून 2015 के आदेश के सहारे डीजीपी को सूचना देने से छूट देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरर्थक बना दिया।
तुम डाल-डाल तो हम पात-पात-इस तरीके से काम कर रहे वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल के लोगों ने भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का पीछा नही छोड़ा। अब पार्टी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में प्रत्यावेदन दिनांक-11.11.2013 लगाया। आयोग ने मामले में संज्ञान ले लिया और भारत सरकार के गृह सचिव को, उ. प्र. तथा असम प्रदेश के पुलिस महानिदेशकों को नोटिस जारी कर दिया। असम के पुलिस महानिदेशक ने बोड़ो आतंकवादियों के खतरे के मद्देनजर भरत गांधी को असम प्रवास के दौरान 24 घंटे पुलिस स्कार्ट देने की बात अपने पत्र दिनांक- 11.06.2015 द्वारा स्वीकार कर लिया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग. के आदेश दिनांक-3 मार्च 2015 पर डीजीपी. ने उ. प्र. के आरोपी मुख्यमंत्री के करीबी व इटावा के उप पुलिस अध्ीक्षक रह चुके ऋिषिपाल यादव को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया। इस जांच अधिकारी ने जांच करने की बजाय आरोपी के आपराधिक सहयोगी की तरह जांच के नाम पर लीपापोती करने लगा।
ऋिषिपाल यादव को जांच अधिकारी नियुक्त होने के बाद व इस जांच अधिकारी के समक्ष गवाही देने के बाद शिकायतकर्ता प्रभात पाण्डेय का गत 27 अप्रैल को अमेठी से अपहरण हो गया। बंदूक की नोक पर सैकडों सादे पेपरों पर दस्तखत करवा लिये गये। अपहरणकर्ताओं का पता लगाने के लिये भरत गांधी ने प्रदेश के मुख्य सचिव को 5 मई 2015 को प्रत्यावेदन देकर सीबीआई जांच या न्यायिक आयोग के गठन की मांग किया। मुख्य सचिव आलोक रंजन ने प्रदेश के गृह सविच को कार्यवाही का आदेश देते हुये मामला गृह सचिव देबाशीश पाण्डा के पास भेज दिया। गृह सचिव श्री पाण्डा राज्य सूचना आयोग की सजा भुगतने को तैयार है किन्तु भरत गांधी के 5 मई 2015 के प्रत्यावेदन पर कार्यवाही करने को तैयार नही है। ऐसा लगता है कि मामला फिर से राज्य सूचना आयोग जायेगा। और जिस तरह का बेसिर-पैर का फैसला जावेद उस्मानी जी ने गत 25 जून 2015 को सुनाया है, उसी ढ़ग का फैसला फिर आयेगा।
गत 20 मई 2015 को भरत गांधी ने प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक से मिलकर पूरा वाकया बताया और सरकार से मामले में रपट मांगने की प्रार्थना किया। राज्यपाल की ओर से कोई कार्यवाही हुई या नही, इस बारे में जानकारी आना अभी बाकी है। राज्यपाल राम नाइक जी की छवि ये है कि वे गलत बात बरदास्त नही करते। अब देखना ये है कि भरत गांधी के प्रत्यावेदन जिसमें स्वयं मुख्यमंत्री ही आरोपी है, राजयपाल क्या कार्यवाही करते है?
भरत गांधी कहते है कि कानूनी कार्यवाही का सामना करते-करते जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजिज आ गये तो उन्होने भरत गांधी का अपहरण करने के लिये टाटा सफारी व फार्चूनर गाडि़यों में अपराधियों को उनके लखनऊ निवास पर 4 जुलाई 2015 दोपहर 1 बजे भेजा। दिल्ली में होने के कारण भरत गांधी उनके हत्थे चढ़ने से बच गये। पुलिस महानिदेषक के पास लिखित शिकायत की गई, पुलिस ने मुकदमा दर्ज नही किया। इसके बाद भरत गांधी ने प्रदेश के मुख्य सचिव को दिनांक 08 जुलाई 2015 को प्रत्यावेदन भेजकर अपने खिलाफ भेजे गये अपराधियों को पकड़ने व मुकदमा चलाने के लिये सी. बी. आई तैनात करेन की मांग किया। प्रत्यावेदन की प्रतियों को कार्यवाही करने के लिये भारत सरकार के गृह सचिव, उ. प्र. के राज्यपाल और पुलिस महानिदेशक व दिल्ली के पुलिस कमिष्नर को भी भेजा गया।
भरत गांधी का कहना है कि चष्मदीद लोगों की नजरों के सामने कन्नौज में लगभग प्रदेश भर से बुलाकर 800 सशस्त्र अपराधियों को मुख्यमंत्री की पत्नी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले लोगों का अपहरण करने के लिये लगाया गया था। सबने मोबाइल पर आपसे मे बात की थी। भरत गांधी ने अपहरणकर्ताओं के मास्टर माइण्ड नवाब सिंह यादव का मोबाइल नम्बर देते हुये तीन साल से लगातार मांग किया है कि कॉल रिकार्ड देखकर सभी 800 अपहर्ताओ को पकड़ा जाये। किन्तु आज तक किसी एजेन्सी ने काल रिकार्ड की परीक्षा नहीं की।
उ. प्र. के 800 अपराधियों को कौन बचा रहा है? क्या केन्द्र में सत्तासीन भाजपा सरकार सी बी. आई. लगाकर अपराधियों का जखीरा प्रदेष से उखाड़ नही सकता? आखिर सी बी. आई. लगाने की भरत गांधी की बात को नकार के क्या केन्द्र की भाजपा सरकार प्रदेश की सपा सरकार के अपराधियों की सुरक्षा नही कर रही है? यदि ऐसा ही है तो क्या भाजपा कहती है कि सपा का जंगलराज चलता रहे, और जंगलराज का नाम लेकर भाजपा लोगों से हर पांच साल में जनता से वोट मांगती रहे।
आखिर जिम्मेदार कौन है?
क्या हाई कोर्ट?......................
क्या सुप्रीम कोर्ट?...................
क्या संघीय गृह मंत्रालय के अधिकारी.......
क्या नेता?................
क्या चुनाव आयेाग?...............
क्या कानून?...........
क्या सभी?..........
कन्नौज अपहरण काण्ड और उसके खिलाफ लड़ी गई कानूनी जंग से साफ पता चलता है कि राजनीति के अपराध के लिये केवल नेता जिम्मेदार नही हैं। देश-प्रदेश के गृह मंत्रालयों के आई. ए. एस. व आई. पी. एस. अधिकारी, प्रदेशों के पुलिय महानिदेशकों के कार्यालय, चुनाव आयोग, हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट भी उतने ही जिम्मेदार हैं। इससे आगे बढ़कर अपनी जान हथेली पर लेकर अपराध के खिलाफ संघर्ष कर रहे भरत गांधी राजनीति के अपराधीकरण के लिये उक्त संस्थाओं के अलावा जनप्रतिनिधित्व कानून व लोकतंत्र की वर्तमान परिभाषा को भी जिम्म्ेदार मानते हैं और अपराध के खिलाफ एक बड़ी मुहिम छेड़ने की जरूरत बताते है।
फिलहॉल, संवैधानिक एजेन्सियों द्वारा की जा रही अपहर्ताओं की सुरक्षा से संदेश. जाता है कि राजनीति का अपराधी सुरक्षित है। राजनीति केवल अपराधियों के लिये है। जो अपराध नही कर सकता, वह चुनाव लड़ नही सकता। चुनाव में दूसरी पार्टियों के अपराधियों का सामना किसी भी पार्टी का सज्जन कार्यकर्ता नहीं कर सकता है? इसलिये पार्टियों के सामने अपराधियों को ही टिकट देने के सिवा कोई विकल्प नही है। इस परिस्थिति को तभी बदला जा सकता है जब राजनीति के अपराधीरिण के खिलाफ केवल बोला ही न जाये अपितु कुछ किया भी जाये। कम से कम श्री भरत गांधी जैसे लोग कुछ कर रहे हैं तो उनका हर संभव सहयोग किया जाये।