लोकपाल पर लोकतान्त्रिक विधयेक
Democratic Bill on Lokpal
(Submitted to the President of India on 9th May 2011,7.40 pm)
2011 का विधेयक संख्यांक .........
विषय सूची
1 प्रारम्भिक
2 भ्रष्टाचार की प्रेरक शक्तियों की पहचान
3 व्यवस्था भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए उपबंध
4 सम्पत्ति की झूठी घोषणा करने से रोकने व काले धन पर अंकुश लगाने संबंधी उपबंध
5 वोटरों के साझे परिश्रम के पैदा हो रही रकम का समान वितरण सुनिश्चित करने हेतु मतकर्ताओं की रिज़र्व बैंक
6 मतकर्ताओं की संचित निधि
7 रिश्वत लेने वाले स्थायी व अस्थायी कार्यपालिका के लोगों को अनुशासित व दण्डित करने संबन्धी उपबन्ध
8 रिश्वत देने वालों को अनुशासित व दण्डित करने संबन्धी उपबन्ध
9 हर तरह के भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने हेतु उपलोकपालों व केन्द्रीय लोकायुक्तों की नियुक्ति
10 लोकपाल के लिए वित्तीय प्रबन्ध
11 प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे में लाने सम्बन्धी उपबन्ध
12 निर्वाचित लोकपाल की शक्तियां
13 लोकपाल के पद पर पदासीन होने के लिए अर्हताओं सम्बन्धी उपबन्ध
14 लोकपाल को उसके पद से हटाने सम्बन्धी उपबन्ध
उददेश्य व कारणों का कथन
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लोकपाल (गठन) बिल – 2011 का हिन्दी रूपांतर
श्री भरत गांधी व अन्य याचिकाकर्ताओं
का
भ्रष्टाचार निरोधक सर्वोच्च परिषद या एण्टी करप्शन एपेक्स बोर्ड/लोकपाल (गठन) विधेयक- 2011
कम से कम परिश्रम से अधिक से अधिक सम्पत्ति का स्वामित्व हासिल करने के लिए शासकीय क्षेत्र में कार्यरत लोगों को रिश्वत देने, रिश्वत देने के लिए विवश करने, शासकीय क्षेत्र में कार्यरत लोगों द्वारा रिश्वत लेने, रिश्वत लेने के लिए विवश करने वाले व्यक्तियों व संस्थानों को अनुशासित व दण्डित करने के लिए लोकपाल के नाम से अपना काम करने में समक्ष एक संस्थान गठित करने के उददेश्य से निर्मित विधेयक
भारत गणराज्य से बासठवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में अधिनियमित हो:
अध्याय – एक
प्रारम्भिक
1) इस अधिनियम का सन्क्षिप्त नाम भ्रष्टाचार निरोधक सर्वोच्च परिषद या एण्टी करप्शन एपेक्स बोर्ड / लोकपाल (गठन) अधिनियम 2011 होगा।
2) यह उस तारीख को तुरंत प्रवृत होगा, जिसे केंद्र सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।
3) इसका विस्तार पूरे भारतीय राज्यक्षेत्र में होगा।
4) परिभाषायें-
A मतकर्ता- मतदाता शब्द का शुध्ध हिन्दी रूपांतरण।
B वोटरशिप – मतकर्ताओं के साझी उद्यम से पैदा आय मे उनको नियमित मिलने वाली नकद रकम।
C गुलाम- सस्ते निर्यात व विकास के लिये कष्टात्मक काम करने के लिये कानूनों द्वारा पाले गये गरीबी रेखा के नीचे व ऊपर के बहुसंख्यक आम नागरिक।
अध्याय – दो
भ्रष्टाचार की प्रेरक शक्तियों की पहचान
1) कम से कम परिश्रम में या बिना किसी परिश्रम के अधिक से अधिक धनार्जन को संभव बनाने वाला किसी व्यक्ति का कोई भी आचरण, कोई भी कानून, या संविधान का कोई भी अनुच्छेद भ्रष्टाचार की प्रेरक शक्ति माना जाएगा, जो मानव स्वभाव के साथ मिलकर व्यक्ति को भ्रष्टाचार करने की प्रेरणा देता हो।
2) देश में प्रचलित असीमित उत्तराधिकार, उपहार, दान, ब्याज के धन्धे, पैसे, ज़मीन, मशीन, मकान... जैसी पूंजी की किरायेदारी और शासकीय-प्रशासकीय प्रतिष्ठानों में प्रचलित रिश्वतखोरी को उक्त अनुच्छेद 2 के अधीन भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देने वाले आचरण या कानून माने जाएंगे।
3) सरकार भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देने वाले व्यक्तियों के आचरणों, कानूनों व संवैधानिक प्रावधानों को इस तरह संशोधित करने का विधेयक सदन में समय-समय पर पेश करेगी, जिससे देश में बिना मानवीय श्रम से, या पूंजी की शक्ति से पैदा होने वाले धन का सभी नागरिकों में समान वितरण होता हो और शासकीय कर्मचारियों सहित किसी भी व्यक्ति को बिना परिश्रम के धनार्जन या कम से कम परिश्रम से अधिक से अधिक धनार्जन का पहले से प्राप्त अवसर समाप्त होता हो व नया अवसर पैदा न होता हो।
अध्याय – तीन
व्यवस्था भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए उपबंध
1) सम्पत्ति सम्बंधी कानूनों में सुधार करके किसी ब्यक्ति के पास मौज़ूद निजी सम्पत्ति के केवल उतने ही अंश का स्वामित्व उसके पास रहने दिया जाये, जो सम्पत्ति उसके निजी परिश्रम से प्राप्त हुई हो।
2) साझे परिश्रम के प्राप्त निजी आय और उस निजी आय से बनी सम्पत्ति को जिन कानूनी प्रावधानों से निजी सम्पत्ति का कानूनी दर्जा मिलता हो, उन सभी कानूनी प्रावधानों को भ्रष्ट कानूनों का दर्जा दिया जायेगा और उन कानूनों का सुधार कर निजी सम्पत्ति के उस अंश को नागरिकों की साझी सम्पत्ति का दर्जा दिया जायेगा, जो सम्पत्ति साझे प्रयासों से पैदा होती है, किंतु भ्रष्ट कानूनों के कारण निजी हाथों में चली जाती है।
3) उत्तराधिकार जैसे कानूनों को सुधारा जायेगा, जो भ्रष्टाचार करने के लिए लोगों को मनोविज्ञानिक प्रोत्साहन देते हैं और भ्रष्टाचार से प्राप्त रकम की सुरक्षा और अगली पीढी में हस्तांतरित करने का अवसर देते हैं।
4) इस अधिनियम के अनु0 2 व 3 के सहारे सरकार देश में पूंजी की शक्ति से पैदा हो रहे जी0 डी0 पी0 के हिस्से का आकलन करेगी, और इसे साझा धन व साझी सम्पत्ति की कोटि की सम्पत्ति मानकर नकद रूप में सभी मतकर्ताओं में वोटरशिप के रूप में नियमित वितरित करने के लिए आवश्यक सभी कदम उठाएगी, जिससे पूंजी से पैदा होने वाला धन भ्रष्ट तरीके से बिना किसी मेहनत के पूंजीधारकों को ही न मिलता रहे, अपितु सभी व्यस्क नागरिकों में बंट जाये।
5) लोकसभा के गठन में चुनाव प्रणाली को त्यागना व सरकारी कर्मचारियों व नागरिकों को संगठन बनाने का अधिकार छीनना चूंकि राजनैतिक लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह होगा और बिना ऐसा किये शासकीय कर्मचारियों को उनके भ्रष्टाचार के आचरण के खिलाफ कठोर दण्ड देना संभव नहीं है। अत: सरकार अपने उन मंत्रालयों व विभागों की पहचान करेगी, जिनका विकल्प बाज़ार में मौज़ूद है, उनके पास क्रयशक्ति की मौज़ूदगी होने पर हर नागरिक बाज़ार से उन सेवाओं को खरीद सकता हो। सरकार इन मंत्रालयों ब विभागों को बन्द कर देगी और उन पर हो रहा व्यय सीधे मतकर्ताओं को वोटरशिप की रकम में जोडकर दे देगी।
6) उक्त अनु0 5 व 6 के लागू करने के बाद भी कुछ लोगों को उक्त अनु0 2 व 3 के अंतर्गत भ्रष्टाचार की रकम प्राप्त करते हुए पहचाना जा सकता है। इसलिए सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य होगा कि वे सम्पत्ति की स्वघोषणा प्रणाली द्वारा अपनी सम्पत्ति के मूल्य की घोषणा करे व उस मूल्य पर ब्याज की दय से नियमित सम्पत्ति कर दें।
7) औसत से आधी संपत्ति पर हर नागरिक का मूलाधिकार माना जाये और इससे अधिक संपत्ति पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ट्रष्टीशिप का सिध्धांत लागू करके औसत से ज्यादा संपत्ति पर कब्जा रखने वालों को औसत से ज्यादा संपत्ति का किरयेदार घोषित कर दिया जाये। जिन राष्ट्रपुत्रों (लोगों) के पास औसत से ज्यादा संपत्ति है, वे लोग औसत से कम संपत्तिधारक राष्ट्रपुत्रों को किराया दें, यह किराया वोटरशिप के नाम से नागरिकों के बैंक खाते तक पहुंचाने के लिये सरकार कानून बनायेगी।
8) राजनीतिक दलों व अन्य संगठनों के माध्यम से राजनीतिक, सामाजिक व संवैधानिक सुधार का काम करने वालों को भारत की संचित निधि से वेतन-भत्ता देने संबंधी कानून बनाया जाये। जिससे सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता धनवानों के लिए काम करने की बजाय पूरे समाज के लिए काम कर सकें और जिससे सामाजिक व राजनीतिक कामों के लिए कायम भ्रष्टाचार की अर्थव्यवस्था को हटाया जा सके व सदाचार की अर्थव्यवस्था लाया जा सके।
अध्याय – चार
सम्पत्ति की झूठी घोषणा करने से रोकने व काले धन पर अंकुश लगाने संबंधी उपबंध
9) आयकर रिटर्न सम्बन्धित दस्तावेजों को भी सूचना के अधिकार के दायरे में लाने के लिये कानूनी उपाय किया जायेगा।
10) किसी व्यक्ति व संस्थान द्वारा स्वघोषित सम्पत्ति का 20 प्रतिशत अधिक कीमत देकर सम्पत्ति का अधिग्रहण करने का अधिकार सरकार के पास है। अधिग्रहण करने का यह अधिकार शासन के साथ-साथ निजी व्यक्तियों व संस्थानों को भी देने का भी कानून बनाया जाये, जिससे सम्पत्ति की झूठी घोषणा करने से लोग डरें।
11) परिषद अध्यक्ष/ लोकपाल को यह अधिकार हो कि सम्पत्ति की घोषणा करने वाले किसी भी व्यक्ति व किसी भी संस्थान की सम्पत्ति को उस व्यक्ति या उस संस्थान को हस्तगत करने का आदेश दे दे, जो संबन्धित सम्पत्ति की 20 प्रतिशत अधिक रकम सम्पत्ति के स्वामी के खाते में जमा कराके सम्पत्ति के स्वामित्व के लिए परिषद अध्यक्ष के कार्यालय में आवेदन दिया हो। ऐसा करके आयकर विभाग को सम्पत्ति की घोषणा में भ्रष्टाचार करने वालों के मन में डर बैठेगा और काले धन पर अंकुश लगेगा।
12) कोई भी व्यक्ति अपनी उसी सम्पत्ति के स्वामित्व का अंतरण कर सकता है, जो कम से कम पांच वर्ष पहले से हर वित्तीय वर्ष में उस सम्पत्ति के बाज़ार मूल्य की जानकारी एक सार्वजनिक हलफनामे के माध्यम से इस शर्त के साथ देता रहा हो कि यदि उसके द्वारा अपनी सम्पत्ति की लगाई गई कीमत से 20 प्रतिशत अधिक रकम कोई भी दूसरा व्यक्ति या संस्थान उसके निजी खाते में जमा कर देगा तो सम्बंधित सम्पत्ति का स्वामित्व ऐसी रकम जमा करने वाले के नाम स्वत: अंतरित समझा जाएगा।
13) यदि किसी व्यक्ति की सम्पत्ति का स्वामित्व उक्त अनुच्छेद के अधीन किसी अन्य व्यक्ति या संस्थान के पास स्थानांतरित हो जाता है, किंतु वह सम्पत्ति का कब्जा अपने पास बरकरार रखना चाहता है तो उसे सम्पत्ति के नये स्वामी के खाते में मूल्य वर्धित सम्पत्ति के नये मूल्य का कम से कम 20 प्रतिशत रकम जमा करना होगा।
14) कोई व्यक्ति या संस्थान किसी सम्पत्ति का उपयोग भी न करता हो, और कोई अन्य भी उसका उपयोग न कर पाये, इस नियति से वह अपनी सम्पत्ति का मूल्य उक्त अनुच्छेद के अधीन बढा-चढा कर घोषित न कर सके, इसके लिए उसे सम्पत्ति के मूल्य की घोषणा करने वाले हलफनामे में यह भी घोषित करना होगा कि वह सम्पत्ति का जो मूल्य घोषित कर रहा है, उस मूल्य का उतना प्रतिशत कर के रूप में हर वर्ष संघीय शासन के कोष में मतकर्ताओं में वोटरशिप के रूप में वितरित करने के उददेश्य से जमा करता रहेगा, जितनी ब्याज दर समकालीन होगी।
अध्याय – पांच
वोटरों के साझे परिश्रम के पैदा हो रही रकम का समान वितरण सुनिश्चित करने हेतु मतकर्ताओं की रिज़र्व बैंक
15) विनिमय की नीति का निर्माण व संचालन मतकर्ताओं के निजी आर्थिक हितों के अनुसार भी हो, इस उददेश्य को प्राप्त करने के लिए व वोटरशिप का पारदर्शी वितरण सुनिश्चित करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के समानांतर मतकर्ताओं की एक रिज़र्व बैंक की स्थापना की जाएगी।
16) मतकर्ताओं की रिज़र्व बैंक के अधिकार व कर्त्तव्य भारत की रिज़र्व बैंक के ही समकक्ष होंगे।
17) मतकर्ताओं की रिज़र्व बैंक भारत के रिज़र्व बैंक के किसी भी ऐसे कदम पर रोक लगा सकेगा, जो उसकी नज़र में मतकर्ताओं के निजी आर्थिक हितों को क्षति पहुंचाता हो।
18) मतकर्ताओं की रिज़र्व बैंक का व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होगा।
19) मतकर्ताओं के निजी हित में मतकर्ताओं की रिज़र्व बैंक कुछ करेंसी नोट भी जारी कर सकेगा।
20) मतकर्ताओं की रिज़र्व बैंक के लिए केवल लोकसभा को ही विधियां बनाने का अधिकार होगा, ऐसे विधेयकों पर राष्ट्रपति व राज्यसभा की सहमति अनिवार्य नहीं होगी, जिससे यह बैंक लोकपथ से व अपने मूल उद्देश्य से विक्षेपित न हो पाये।
अध्याय – छह
मतकर्ताओं की संचित निधि
21) भारत की संचित निधि के समानांतर मतकर्ताओं की संचित निधि होगी जो औसत से अधिक सम्पत्ति रखने वालों पर कर लगा कर साझे धन के रूप में इकठ्ठा किया जाएगा।
22) मतकर्ताओं की संचित निधि से ही वोटरशिप का नियमित भुगतान किया जाएगा।
23) मतकर्ताओं की संचित निधि मतकर्ताओं के लिए मतकर्ताओं की ओर से भारत सरकार इकठ्ठा करेगी, जिसको मतकर्ताओं द्वारा स्वयं अपनी इच्छा से ही व्यय किया जाएगा।
अध्याय – सात
रिश्वत लेने वाले स्थायी व अस्थायी कार्यपालिका के लोगों को अनुशासित व दण्डित करने संबन्धी उपबन्ध-
24) लोकपाल स्वत: किसी भी शासन-प्रशासन के कर्मचारी, अधिकारी व मंत्री यहाँ तक कि प्रधानमंत्री के विरुद्ध भ्रष्टाचार संबन्धी शिकायत पंजीकृत कर सकता है।
25) दर्ज शिकायत की निर्धारित प्रक्रिया से जाँच करेगा।
26) इस तरह की जाँच यथाशक्य कार्यपालिका, विधायिका व न्यायापालिका के किसी भी प्राधिकारी, देश व विदेश के किसी भी राजनैतिक व अराजनैतिक संगठन, फर्म व कम्पनी के प्राधिकारी से प्रभावित नहीं होगी। यदि किसी भी तरह से प्रभावित होता हुआ महसूस करेगा, तो ऐसे प्रयासों को निष्प्रभावी बनाने के लिए सक्षम विधेयक बनाकर लोकपाल संसद के सक्षम रखेगा। ऐसा विधेयक दो तिहाई बहुमत से पारित होकर कानून का दर्जा प्राप्त करेगा।
27) भ्रष्टाचार के आरोपों के लिए भारतीय दण्ड संहिता निर्धारित दण्ड को लोकपाल यदि और भी कठोर बनाना उचित समझता है तो इस आशय की सिफारिश वह भारत के कानून मंत्रालय को करे।
28) रिश्वत के मामलों में हमेशा कम से कम दो पक्ष होते है, दोनों को समान रूप से दोषी माना जाये अत: जब तक रिश्वत देने वाले की पहचान नहीं कर ली जाती, तब तक रिश्वत लेने वाले को भी दण्डित नहीं किया जाएगा।
अध्याय – आठ
रिश्वत देने वालों को अनुशासित व दण्डित करने संबन्धी उपबन्ध-
29) रिश्वत लेने के लिए विवश करने वाले का अपराध रिश्वत लेने वाले के द्वारा कारित अपराध के समकक्ष माना जाएगा, इसलिए उसको भी वही दण्ड दिया जाएगा, जो दण्ड संबन्धित मामले में रिश्वत लेने वाले को दिया गया है।
30) रिश्वत देने के लिए विवश किया जा रहा व्यक्ति रिश्वत देने का अपराध नहीं करेगा। वह रिश्वत देने के लिए विवश करने वाले व्यक्ति की शिकायत लोकपाल के कार्यालय में करेगा। यदि वह अपना काम कराने के नाम पर रिश्वत दे देता है, तो उसको भी वही दण्ड दिया जाएगा, जो दण्ड संबन्धित मामले में रिश्वत लेने वाले को दिया गया है।
31) शासन- प्रशाशन के निचले पांवदानों पर सरकारी क्षेत्र के लोग रिश्वत देने के लिए गैर सरकारी लोगों को अधिक मामलों में विवश करते है। इसके विपरीत राजनीति की अर्थव्यवस्था न बन पाने के कारण शासन-प्रशाशन के ऊंचे पांवदानों पर गैर सरकारी लोग सरकारी क्षेत्र के लोगों को रिश्वत देने के लिए अधिक मामलों में विवश करते है। इसलिये निचले पांवदानों पर रिश्वत देने के लिए विवश व्यक्ति अपील में अपनी विवशता सिद्ध करके सजा से मुक्ति पा सकता है, किंतु इस तरह के अपील का अधिकार ऊंचे पांवदानों पर घटी भ्रष्टाचार के मामलों मे रिश्वत देने वाले व्यक्ति को प्राप्त नहीं होगा।
अध्याय – नौ
हर तरह के भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने हेतु उपलोकपालों व केन्द्रीय लोकायुक्तों की नियुक्ति
32) हर तरह के भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने हेतु और लोकपाल के काम में किसी भी व्यक्ति व किसी भी संस्थान द्वारा दखल की सम्भावना रोकने हेतु लोकपाल अपने अधीन चार उपलोकपालों की नियुक्ति करेगा।
1 पहला उपलोकपाल राजनीतिक दलों से जुडे लोगों व सरकारी कर्मचारियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों में जांच करने, लोकपाल के काम में दखल देने से रोकने, रिश्वत लेने वालों को अनुशाशित व दण्डित करने के लिये काम करेगा। इसे उपलोकपाल – राजनीतिक व प्रशासनिक मामले कहा जाएगा।
2 दूसरा उपलोकपाल संसद द्वारा परिभाषित अमीरी रेखा के ऊपर के आयकरदाताओं को दखल देने से रोकने के लिए काम करेगा। वह रिश्वत देने वालों को दण्डित करने के लिये काम करेगा। वह बडे औद्योगिक घरानों व औद्योगिक संगठनों को भ्रष्टाचार में लिप्त होने संबन्धी कृत्यों के मामलों में उनको अनुशासित व दण्डित करने के लिये काम करेगा। इसे उपलोकपाल – आर्थिक मामले कहा जाएगा।
3 तीसरा उपलोकपाल विदेशों के संबंध रखने वाले व विदेशों से सुरक्षा पाने वाले देश व विदेश के नेताओं, अधिकारियों, उद्योगपतियों व व्यापारियों और राजनीतिक, सांस्कृतिक व वित्तीय संस्थानों को भ्रष्टाचार में लिप्त होने संबन्धी कृत्यों के मामलों में उनको अनुशासित व दण्डित करने के लिये काम करेगा। वह ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के गठन करने के लिए विधायी प्रावधानों की सिफारिश करेगा, जो संस्थान उन अंतर्राष्ट्रीय कानूनों व सन्धियों को निष्प्रभावी बना सकें- जो कानून व जो सन्धियां भ्रष्टाचार के माध्यम से हासिल रकम की और दूसरे देशों के भ्रष्ट लोगों की सुरक्षा करते है। इसे उपलोकपाल – विदेशी मामले कहा जाएगा।
4 चौथा उपलोकपाल देश में प्रचलित उन कानूनों और उन मूल्यों की समीक्षा करेगा और संबन्धित कानूनों व मूल्यों में संशोधन तैयार करके सरकार को कार्यवाही के लिए प्रेषित करेगा; जिन कानूनों व मूल्यों के कारण भ्रष्टाचार करने के लिए लोगों को प्रेरणा मिलती है।
33) अपने काम में सहायता के लिये प्रत्येक उपलोकपाल अपने अधीन दो-दो लोकायुक्तों की नियुक्ति करेंगे, जिसे केन्द्रीय लोकायुक्त कहा जाएगा।
अध्याय – दस
लोकपाल के लिए वित्तीय प्रबन्ध
34) चूंकि कोई भी संस्थान व व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ऐसे व्यक्ति व ऐसे संस्थान द्वारा प्रभावित अवश्य होता है, जिससे अपने खर्च के लिए वह धन प्राप्त करता है। यदि लोकपाल व उसका सचिवालय भारत की संचित निधि से धन प्राप्त करेगा, तो वह भारत सरकार से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। यदि वह सम्पन्नतम वर्ग से धन प्राप्त करेगा तो यह वर्ग लोकपाल को अपने निजी हित में उपयोग करेगा। अत: लोकपाल का वित्तीय प्रबन्ध करने के लिए भारत की संचित निधि के समानांतर एक नया कोष बनाया जाएगा, जिसे लोकनिधि कहा जाएगा।
35) लोकनिधि देश के समस्त व्यस्क नागरिकों की उस आय के एक अंश के रूप में वसूल की जाएगी जो आय भारत सरकार उसके बैंक खाते में देश की साझी सम्पत्ति का हिस्सेदार होने के नाते किराये के रूप में नियमित भेजेगी।
अध्याय – ग्यारह
प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे में लाने सम्बन्धी उपबन्ध –
36) चूंकि राष्ट्रपति, मुख्य न्यायधीश, लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री का पद राज्य की सर्वोच्च सत्ता का प्रतिनिधित्व करते हैं किंतु समय बीतने के साथ साथ बढी शिक्षा व तकनीकि ने इनके कार्यों से जनता के कुछ अंश को असंतुष्ट किया है। ऐसी स्थिति में चुनाव की किसी ऐसी प्रणाली की ज़रूरत आ पडी है, जिससे राज्य के इन घटकों के कामों से समाज के सभी वर्ग संतुष्ट हो सकें। जब तक ऐसी किसी चुनाव प्रणाली को खोजा नहीं जाता तब तक के लिए आवश्यक हो गया है कि लोकपाल जैसा आपात प्रबन्ध करके प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे में लाकर कम से कम भ्रष्टाचार जैसी समस्या पर प्रभावशाली अंकुश लगाया जाये।
37) लोकपाल का गठन और उसके दायरे में प्रधानमंत्री का पद लाना और लोकतंत्र तथा भारत के संविधान के मूल ढांचे को बनाए रख पाना तभी सम्भव है, जब लोकपाल के पद का लोकतांत्रिक मूल्य प्रधानमंत्री के पद के लोकतांत्रिक मूल्य से अधिक हो। और जिससे कार्यपालिका व विधायिका पर शासन करने के लोकपाल के अधिकारों को लोकतांत्रिक व तर्कसम्मत ठहराया जा सके। ऐसा तभी सम्भव है, जब लोकपाल की गठन की प्रक्रिया प्रधानमंत्री के पद के चयन से अधिक लोकतांत्रिक हो। चूंकि प्रधानमंत्री के चुनाव में संसद सदस्य भाग लेते हैं अत: आवश्यक है कि लोकपाल के चयन में सांसदों से अधिक संख्या में मौज़ूद विधायक या ब्लाक प्रमुख भाग लें। चूंकि विधायकों को मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार पहले से प्राप्त है इसलिए उनको दोहरा अधिकार देने से ज़्यादा बेहतर है कि लोकपाल का चुनाव सीधे देश के समस्त ब्लाक प्रमुखों के बहुमत से किया जाये। जिससे कार्यपालिका व विधायिका पर शासन करने के लोकपाल के अधिकारों को लोकतांत्रिक व तर्कसम्मत ठहराया जा सके। लोकपाल का चुनाव केवल वही व्यक्ति लड सकता हो, जो या तो सर्वोच्च न्यायालय का जज रहा हो, सर्वोच्च न्यायालय का जज बनने की योग्यता रखता हो।
38) लोकपाल की चयन प्रक्रिया में किसी भी ऐसे व्यक्ति की भूमिका व हस्तक्षेप न हो, जिसको किसी विदेशी सरकार व संस्थान ने पुरस्कृत किया हो। जिससे विदेशी ताकतें लोकपाल के माध्यम से प्रधानमंत्री कार्यालय का संचालन करने में सफल न होने पायें।
39) धन की व प्रचार माध्यमों की ताकत से लोकपाल प्रभावित नहीं होने पाये, इसके लिए संसद को यह अधिकार होगा कि वह अमीरी रेखा बनाकर देश में ऐसी क्षमता रखने वाले लोगों, संगठनों व संस्थाओं की जानकारी सार्वजनिक करेगी ब सरकार को उन पर विशेष नज़र रखने व समय-समय पर उचित कानूनों का मसौदा संसद के समक्ष रखने को कहेगी।
अध्याय – बारह
निर्वाचित लोकपाल की शक्तियां-
40) वह बडे से बडे राजनीतिक व व्यापारिक संगठनों, उद्योगपतियों, व्यापारियों, न्यायामूर्तियों, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री को भी लोकसभा अध्यक्ष; राष्ट्रपति या उच्च व सर्वोच्च न्यायाधीश की अनुमति के बिना रिश्वत लेने या देने या भ्रष्टाचार के किसी अन्य तरीके के आरोप में स्वत: जाँच शुरू कर सकता है, व निर्धारित प्रक्रिया से स्वयं दण्डित भी कर सकता है।
41) लोकपाल तत्काल प्रभाव से जाँच में दखलन्दाजी रोकने के लिए आरोपी को जेल भेज सकता है।
42) बर्बरता की श्रेणी में आने के कारण लोकपाल किसी को भी किसी भी तरह के मामले में मृत्यु दण्ड नहीं दे सकता, किंतु अधिकतम 10 वर्ष की सज़ा दे सकता है।
43) भ्रष्टाचार के आरोपी के साथ-साथ भ्रष्टाचार के लिए उकसाने वाले को भी लोकपाल समान दण्ड से दण्डित करेगा, यदि उकसाने व प्रेरित करने वाला व्यक्ति की बजाय कोई कानून या संस्थान है तो ऐसे कानून या संस्थान को सुधारने से पूर्व भ्रष्टाचार के आरोपी को दण्ड नहीं दिया जाएगा।
44) भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वालों को व जाँच में सहयोग देने वालों को लोकपाल पर्याप्त सुरक्षा देगा।
अध्याय – तेरह
लोकपाल के पद पर पदासीन होने के लिए अर्हताओं सम्बन्धी उपबन्ध –
45) लोकपाल का चुनाव केवल वही व्यक्ति लड सकता है, जो या तो सर्वोच्च न्यायालय का जज रहा हो, सर्वोच्च न्यायालय का जज बनने की योग्यता रखता हो।
46) अन्य योग्यताओं के अलावा लोकपाल केवल ऐसे ही व्यक्ति को बनाया जाये, जो पद ग्रहण की तारीख से ही अपने पास मौजूद सम्पत्ति के उस हिस्से को देश की संचित निधि में बेशर्ते दान देने की कानूनी घोषणा करे, जो चल व अचल सम्पत्ति उसके पास देश की औसत सम्पत्ति से अधिक है।
47) लोकपाल को देश की औसत आय से अधिक रकम वेतन व भत्तों के रूप में प्रतिबन्धित हो, जिससे वह देश के बहुमत की आर्थिक अपेक्षाओं से जुडा रह सके, इस पद के लिये चरित्र से कुछ अलग तरीके का व्यक्ति तलाशा जा सके व अल्पसंख्यक अभिजात्य वर्ग से प्रभावित होने से बचा रह सके।
48) पद पर स्थापित होने के बाद लोकपाल किसी भी तरह की सम्पत्ति न तो अपने बच्चों को उत्तराधिकार में दे सकता है और न तो किसी व्यक्ति या किसी संस्थान को दान में ही दे सकता है। इससे लोकपाल के पद पर वही व्यक्ति आसीन हो सकेगा, जो संतति व सम्पत्ति दोनों के मोह से मुक्त होगा। यही दोनों चीजें भ्रष्टाचार के मुख्य प्रेरणा स्रोत रहे हैं।
49) उप लोकपालों की नियुक्ति की प्रक्रिया उनके अलग- अलग स्वभाव के कामों के अनुरूप होगी, वे अलग- अलग क्षेत्रों से लिये जायेंगे। लोकपाल की भूमिका केवल शपथ दिलाने व समंवय बनने की होगी।
अध्याय – चौदह
लोकपाल को उसके पद से हटाने सम्बन्धी उपबन्ध –
50) राष्ट्रपति को लोकपाल को उसके पद से हटाने का अधिकार इस शर्त पर होगा, कि राष्ट्रपति के चुनाव की प्रणाली में सुधार करके उसको राष्ट्र्पाल बना दिया जाये और देश के गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले व्यस्क नागरिकों को भी राष्ट्र्पति पद के लिए हो रहे चुनाव में मतकर्ता बनाया जाये। जिससे प्रतिनिधित्व से वंचित देश के गरीबों को कम से कम एक प्रतिनिधि मिल सके, राष्ट्रपति के पद का लोकतांत्रिक मूल्य लोकपाल से अधिक हो सके और जिससे लोकपाल पर शासन करने के राष्ट्र्पति के अधिकारों को लोकतांत्रिक व तर्कसम्मत ठहराया जा सके।
51) लोकपाल को हटाने के लिए राष्ट्र्पति को सिफारिश करने का अधिकार संसद को हो, बशर्ते संसद साधारण बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित करे।
उद्देश्य व कारणों का कथन
आज देखा यह जा रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष तेज हुआ है, भ्रष्टाचार उससे भी तेजी से बढा है, वस्तुत: इसका प्रमुख कारण भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी लोगों को पहचानने में लगातार हो रही गलती है। जो लोग व्यक्ति के भ्रष्टाचार के खिलाफ घेराबन्दी कर रहे है, उन्हीं लोगों द्वारा व्यवस्था के भ्रष्टाचार को सहारा दिया जा रहा है।
सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को मीडिया के प्रयासों से लोग समाज के लिए बडा खतरा मानने लग गये हैं, किंतु वही मीडिया स्वयं अपने प्रबन्धकों द्वारा किए जा रहे, और करवाए जा रहे भ्रष्टाचार के दृश्य को सामने पडने पर अपनी पलकें झुका लेने के लिए अभिशप्त है। असीमित उत्तराधिकार संबन्धी विविध कानूनों के कारण सम्पन्न लोगों के बच्चे बिना कुछ किए-धरे ही बडी पूंजी के मालिक बन जाते हैं और उनकी तुलना में बहुत छोटी पूंजी का मालिकाना करने वली राजसत्ता उनके भ्रष्टाचार के सम्मुख घुटने टेकने के लिए मज़बूर है। आर्थिक सत्ताधीशों के ऊपर वर्तमान राजव्यवस्था में काम करने वाले राजनेताओं का वास्तविक नियंत्रण समाप्त हो गया है और परिणाम स्वरूप वर्तमान लोकतंत्र ब राज्य जनादेश से निर्देशित होने के बजाय धनी लोगों के धनादेश से निर्देशित हो रहे हैं।
डाक्टर, इंजीनियर, आई0 ए0 एस0, पी0 सी0 एस0, एम0 पी0, एम0 एल0 ए0; यानी सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को अब यह बात समझ में आ गई है कि उत्तराधिकार कानून संबन्धी प्रावधानों के कारण ये अपने बच्चों के नाम सम्पत्ति ही स्थानांतरित कर सकते हैं, राष्ट्रप्रेम, कर्त्तव्यनिष्ठा व इमानदारी के आचरण से अर्जित डिग्री-डिप्लोमा, मान-सम्मान व प्रतिष्ठा नहीं। ये देखते है कि अरबपति का बेटा कानूनी प्रावधानों के कारण अरबपति बन सकता है लेकिन डाक्टर का बेटा डाक्टर नहीं बन सकता, उसे परीक्षा पास करनी पडती है। यह अनुभव लोगों को समाज व राष्ट्र के लिए काम करने की बजाय केवल बच्चों के लिए काम करने के लिए प्रेरित कर रहा है और ईमानदारी. राष्ट्रप्रेम व कर्त्तव्यनिष्ठा- सब कुछ निरर्थक बना दिया है। यदि सिद्धांत रूप में यह मान लिया जाए कि सबको अपने बच्चों के लिए ही काम करना चाहिए, तो भ्रष्टाचार करने वाला उसे कहा जाएगा जो राष्ट्र व समाज के लिए काम करता होगा। यदि कुछ लोगों को अपने पुत्रों के लिए ही काम करना चाहिए तो शेष लोगों को राष्ट्र, समाज व संस्कृति के लिए काम करने के लिए बाध्य कैसे किया जा सकता है? वस्तुत: शासकीय क्षेत्र में काम करने वालों पर जब भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जाता है, तो वे अपने साथ इसी तरह की भेदभावपूर्ण बाध्यता महसूस करते हैं और कई लोग हो इसके खिलाफ विद्रोह करने के लिए भ्रष्टाचार को ही एक हथियार के रूप में उपयोग करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि क्यों न उत्तराधिकार का कानून सीमित या समाप्त करके उद्योग-व्यापार जगत के लोगों पर भी अपने बच्चों की बजार अपने राष्ट्र के लिए काम करने की बाध्यता डाली जाये।
भष्टाचार की समस्या के इन सभी आयामों को देखते हुए, व भ्रष्टाचार के बढते बुखार को देखते हुए अब आवश्यक हो गया है कि जिन लोगों को भी बिना परिश्रम के आय प्राप्त हो रही हो, उन सभी को भ्रष्टाचार माना जाए। चाहे ऐसे लोग सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हो, या उद्योग-व्यापार के क्षेत्र में। देश में बिना परिश्रम के पैदा हो रहे धन की गणना की जाए और इसे सभी मतकर्ताओं में वोटरशिप के रूप में बांट दिया जाये तो इस धन को हडपने के लिए बाज़ारवादियों व राज्यवादियों के बीच भ्रष्टाचार के नाम पर चल रही प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जाएगी। आज तो बिना परिश्रम के अर्थव्यवस्था में पैदा होने वाले इस धन को हडपने के लिए उद्योग-व्यापार के लोग चाहते हैं कि पूंजी के किराये के नाम पर यह सारा धन उनके पास आ जाये और शासकीय क्षेत्र के लोग चाहते है कि रिश्वत के रास्ते यह धन उनके पास आ जाये। भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले अधिकांश लोग या तो इस समस्या के सभी पहलूयों से अनजान है या जानबूझकर वाज़ारवादियों की झोली में बिना परिश्रम के पैदा होने वाला देश का सारा साझा धन उडेलने की साजिश कर रहे हैं। अत: स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ लोग सच्ची लडाई लड रहे है, जबकि कुछ लोग छदम लडाई लड रहे हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ छदम लडाई के कारण अर्थव्यवस्था द्वारा पैदा हो रही संवृद्धि में नागरिकों की हिस्सेदारी की लडाई पीछे छूट जाती है। सार्वजनिक व साझे विकास के लिए जी0 डी0 पी0 का पर्याप्त हिस्सा राजस्व के रूप में जुटाने के लिए कौन-कौन से कर कितनी मात्रा में लगने चाहिए, यह बहस दब जाती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ छदम लडाई लडने वाले लोगों के लिए यह ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है कि 10 करोड रूपये के कर राजस्व में से भ्रष्टाचार में लीक होने वाला 4 करोड रूपये का सदुपयोग हो, भले ही चालिस करोड रूपया सम्पन्न लोगों के पास यू ही छोड दिया जाये। उसे कर के रूप में इकठ्ठा करके सार्वजनिक क्षेत्र की सेवा करने में ऐसे लोगों की कोई रुचि नहीं है। ऐसे लोग पांच करोड के लिए लडते हैं, लेकिन 40 करोड यू ही छोड देते हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ छ्दम लडाई लडने वाले लोगों को उद्योग-व्यापार जगत के लोगों का उपभोक्तावाद, विलास, फिज़ूलखर्ची और पुत्रमोह में कानून की धज्जियां उडाने की प्रवृति – सब कुछ मंज़ूर है। आपत्ति बस इतनी है कि इस में एक भी कुकर्म शासकीय क्षेत्र में काम करने वाले लोग न करने पायें। वस्तुत: विधवा का वैधव्य पत्नी विहीन पुरुषों के संयम व सदाचार से ही चल सकता है। शासकीय क्षेत्र में काम करने वाले ईमानदार लोग उस विधवा की तरह है, जिसका वैधव्य उद्योग-व्यापार जगत के लंपट लोगों के द्वारा नष्ट किया जा रहा है। इस पूरे परिदृश्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ आभासी और छदम संघर्ष करने वाले लोगों की जमात उस गंवई पंचायत की तरह है, जो विधवा के पेट में अवैध बच्चा देखकर उसे दण्डित कर रही है और लंपटों को साण्ड की तरह विधवाओं के मोहल्ले में छुट्टा घूमने के लिए छोड दे रही है। वहाँ जाकर वे भ्रष्टाचार का अगला कारनामा दिखा रहे हैं। इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई परिणाम न देने वाली लडाई एक पेशेवर लडाई बन गई है। इस विधेयक में भ्रष्टाचार को एक गम्भीर समस्या मानते हुए पक्षपात रहित उपाय सुझाए गये हैं।
नई दिल्ली
09 जुलाई, 2011 ]
(भरत गांधी व अन्य याचिकाकर्ता )
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